मैं बिस्तर से उठा, तू रसोई में धुआँ वों के बीच लड रही हो।
मैं दाँतों को साफ करूँ तो तू बर्तनों को।
मैं अखबारों से विषय इकट्ठा करूँ तो तू घर के बिखरे कूड़े इकट्ठा करती हो।
मैं अपनी सफाई करूँ तो तू कपड़ों से मैलों को।
मेरी पेट भरने के लिए तू बर्तनों को रसोई से भरती।
मैं दफ्तर जाने तैयार हूँ तो तू बच्चों को स्कूल भेजने ।
मैं ऑफिस से लौटा लेकिन तू अबतक रसोई घर से नहीं लौटी।
मैं सोने गया लेकिन तू ताला लगाकर, जलती लाइट बुझाकर, बच्चों के आच्छादन ठीक कर बिस्तर पर गिरती।
हर रविवार और त्योहारों के दिनों में हमें छुट्टी मिलती, लेकिन तुम्हें घरेलू कामों से कब मिलेगी छुट्टी।
हे! मेरी जीवन साथी, आजकल मुझे यह बात झिझक रही है कि मैं काम करता हूँ।
जब कि “सेन्सस” लेने वाले से तू बोली कि तू कहीं काम न करती।सिर्फ गृहिणी हो।
मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ पद्मजा जी, हर घर में गृहणी की यही कहानी है।
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जी हाँ। मेरी अनुभव🙂
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true!!
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