श्री कृष्ण हर दिन बगीचे में जाकर पौधों से अपने प्यार को प्रकट करता था और पौधे भी खुशी से अपने अपने प्यार को व्यक्त करते थे।
ऐसे ही एक दिन श्री कृष्ण बडी ही हैरानी से उपवन आया और बांस के पेड़ के पास आकर रूक गया।बांस के पेड़ ने श्री कृष्ण से पूछा कि “क्या बात है कृष्ण, कुछ परेशान लगते हो?”
कृष्ण ने कहा, ” मुश्किल की बात है, इसलिए तुमसे पूछने में मुझे हैरानी हो रहा है।”
बांस ने कहा, “परवाह नहीं बता दो न, यदि मैं तेरी काम में आऊँ तो मेरे लिए वह सौभाग्य की बात है।”
कृष्ण का कहना है कि यह बांस का जानलेवा का विषय है। इसपर कुछ देर तक बांस ने सोचा और श्री कृष्ण से अपने जान देने के लिए अपना पूरा सहमति दे दी।
तभी कृष्ण ने बांस को काटा और इसमेँ सुराख करते वक्त बांस को बहुत ही दर्द हुई, लेकिन बांस ने अपनी बाधा को सह ली। अंत में श्री कृष्ण को गाने के लिए एक बांसुरी मिल ही गई।
पूरा दिन बांसुरी कृष्ण के साथ ही होता था, इस पर गोपियों को बडी ही जलन हो रही थी। उन्होंने बांसुरी से पूछी कि “हम तो कृष्ण के साथ बहुत कम समय ही होती, किंतु तुम तो पूरा दिन कृष्ण के साथ ही होते हो? क्या राज है. हमें भी जरा बताओ न।”
बांसुरी ने आराम से उत्तर दिया, “मैं अपने आप को कृष्ण के हाथों में सौंप दिया। मेरे लिए जो कुछ भी सही है, उसी तरह कृष्ण ने मुझे मोड दिया। जिसका परिणाम ऐसा हुआ कि अब मैं उसके साथ सदा के लिए सुंदरं बांसुरी की रूप में रहूँ। वो अपने इच्छानुसार मुझमें गीत बजाता रहे। ”
यही होती है समर्पण। कभी भी हम इस बात को ध्यान में रखें कि भगवान पर पूरा यकीन करके सच्चे दिल से उन्हें अपने आप को सौंप दें और निश्चिंत रहें। हमें जो भी सही होगा सही समय पर भगवान हमें वो जरूर देगा।
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