अर्जन्टीना से बार्न स्वालो नामक एक छोटीसी पक्षी मिथुन केलिए वहाँ से हर फरवरी मास लगभग 8300 कि.मी. रवाना होकर मार्च महीने के अंत में अमेरिका के कालिफोर्निया तक पहुँचती है। वहाँ के केपिस्ट्रानो देवालय में टिकाना लगाकर वंश वृद्धि करती है और नवजातों के साथ अक्तूबर में फिर से 8300कि.मी. पार करके अर्जन्टीना वापस आती है।
इसमें आश्चर्य क्या हो सकता है? बात यह है कि उसके पूरे इतनी दूर की सफर में कहीं भी जमीन या पहाड़ का नजर तक नहीं है। सिर्फ समुद्र के ऊपर का यान। यदि रास्ते में थकावट के कारण आराम करने या तो भूख मिटाने के लिए रूकेगी कहाँ? इसलिए वह अपने यान के शुरू से ही अपने साथ एक छोटी सी लकडी के टुकड़े को चोंच में दबाकर उडना शुरू करती।रवाने के बीच में जब भी आराम करती, समुद्र के निकट उडती हुई मछलियों को ढूंढते ढूंढते उस लकडी को लहरों पर डाल कर इसी के ऊपर बैठकर आराम करती।
16,600 दूर तक की यान केवल
एक छोटी सी लकडी की सहारा से हो सकती तो, कयी सुविधाओं और इनके साथ दीमाग को लेकर हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए कौन सी मुसीबत रोक सकती??
Awesome post
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