एकबार एक गाय गांव की सीमा पर चरते चरते निकट की जंगल में पहूँच गई। अचानक अपनी सिर उठाकर देखी और चौंक कर कांपने लगी।उसपर हमला करने के लिए एक बाघ उसे गुर्राते हुए देख रहा था। तुरंत गाय अपने को संभालते हुए पास ही मौजूद एक तालाब में कूदी। गाय का पीछे करते हुए साथ ही साथ बाघ भी तालाब में कूदी। वह तालाब कीचड़ से भरा हुआ था। उससे बाहर निकलना दोनों को नामुमकिन सा लगा। फिर भी बाघ गाय को धमकी देते हुए कहा कि वह गाय की हड्डियों को गिने बिना सांस नहीं लेगी। इस बात पर गाय को हँसी आ गई। वह अपनी हालत भूलकर हँसी और बोली। इस स्थिति में होकर धमकी देने से कोई भी फायदा नहीं हो सकता। और भी बोली, गोधूलि के समय अपने को घर में न पाने पर उसका स्वामी उसे ढूंढ कर इस जगह पर पहूँचेगा और अपने को बाहर जरूर निकालेगा। लेकिन बाघ ने इस बात को न माना और गाय की
परिस्थिति पर मजाक भी किया।
संध्या आरंभ हुई और गाय का मालिक वहाँ पहूँचा।उसे वहाँ अपनी गाय के साथ बाघ को भी पाकर डर लगी। लेकिन बाघ को कीचड़ में फंसी हुई देख कर चैन से सांस ली। और बडी प्रयास से गाय को कीचड़ से बाहर निकाला।
इस घटना में गाय आत्मसमर्पण को सुझाती। बाघ अहंकार का प्रतीक है। मालिक गुरु का महत्व का याद दिलाता है। कीचड इस संसार में हम प्रतिदिन सामने करनेवाले परेशानियों को याद कराती है।
इस कहानी का सार यही है कि, हमें जरूर आजाद रहना ही चाहिए लेकिन कभी कभी दूसरों का सहारा भी आवश्यक होता है। जैसे कि हमारे दोस्तों का, अध्यापक का, साथी का, पडोसियों का। इसलिए हमें बाघ जैसा अहंकार को त्याग कर गाय की मनोभाव को अपनाना जीवन के परेशानियों से बचने में बेहतर साथ दे सकती है।
very nice and in real life big challenge is also – आत्मसमर्पण
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Sundar varnan!
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😊
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👌👌👌👌
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Right… thanks
✍️🙂👍
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ये वाली अभी कुछ दिन पहले ही कही पढ़े थे
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