
ज्ञानी रमण महर्षि के पास एक छोटा सा बालक अपने मन की आशंका को प्रकट करते हुए पूछा कि ” ध्यान” किसे कहते हैं??
महर्षि हंसते हुए उस बालक को केले के पत्ते में एक रोटी देकर कहा, ” जब मैं हां कहूंगा तब तुम रोटी खाना शुरू कर और जब मैं दूसरी बार हां कहूंगा,तब तक पत्ते में रोटी खा चुका होना चाहिए”।
बालक उत्साहपूर्वक रोटी पर अपनी हाथ रखकर महर्षि के मुंह से हां शब्द की इंतजार कर रहा था। महर्षि ने कुछ देर के बाद हां कहे। तुरंत बालक उनके चेहरे को देखते हुए जल्दी से जल्दी बड़े बड़े टुकड़ों में रोटी को खाना शुरू किया। उसका पूरा लगन महर्षि के मुंह से दूसरी हां शब्द निकलने के अंदर रोटी को खत्म करने में ही था। महर्षि हंसते हुए बालक को ही निहार रहे थे। रोटी का अंतिम टुकड़ा जब बालक ने हाथ में लिए महर्षि को देख रहा था तब महर्षि ने दूसरी हां शब्द कह दिए। तुरंत बालक रोटी के अंतिम टुकड़े को मुंह में डाल दिया।
महर्षि बालक को समझाते हुए कहा कि ” रोटी खाते समय जिस तरह तुम्हारी मन सिर्फ मेरे हां कहने और रोटी खाने में ही केंद्रित रहा, उसी तरह जो भी काम करो , भगवान को ध्यान में रखकर काम करने पर वह सफलता देती है। और इस चर्या को ही सीधे बातों में ” ध्यान” कहते हैं।
वाह, बहुत सुंदर।
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beautifully explained 🙂
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