द्रौपदी का गर्वभंग

पांडवों के वनवास के समय एक बार श्री कृष्ण उन्हें देखने जंगल गया था। द्रौपदी को श्री कृष्ण की तरफ अपनी भक्ति पर बहुत ही घमंड महसूस हो रही थी। उसने श्री कृष्ण से, ” आप कैसे आए? आपके किसी भी तरह की वाहन नजदीक में नहीं हैं??? ” श्री कृष्ण ने सिर्फ पैदल चल कर आने की बात कहा । इससे द्रौपदी हैरान हो गई। उसने श्री कृष्ण से कहा, ” आप पहले गर्म पानी से नहाइए। मैं भी भोजन की तैयारियां करती हूं। ” इतना कहकर उसने तुरंत भीम से श्री कृष्ण के लिए गर्म पानी की इंतजाम करने के लिए कहा।

भीम ने एक बहुत बड़े घटे को लेकर पास की नदी से वैसे ही पानी भरा। तीन बड़े बड़े पत्थरों से चूल्हा बनाया और उस पर घड़े को रखकर पानी गर्म करना शुरू किया। एक घंटे के बाद भी पानी गर्म नहीं हुई। ठंडा ही ठंडा था।

द्रौपदी और भीम दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आई। इतने में श्री कृष्ण को भूख लगने लगा। भीम और द्रौपदी दोनों बहुत चिंतित हो गए। तब श्री कृष्ण ने उनसे घड़े की पानी को नीचे बहलाने को कहा। तब अंदर से एक मेंढक बाहर कूद पड़ा। इसे देखकर दोनों तंग रह गए।

उनसे श्री कृष्ण ने कहा “इस मेंढक की वजह से ही पानी गर्म नहीं हुई। वह अंदर से मुझसे अपने को बचाने की प्रार्थना कर रही थी। इसलिए मैं ने पानी गर्म होने से रोका। ” इस बात पर द्रौपदी शर्मा गई। जो उसे सिर्फ और सिर्फ अपनी ही भक्ति पर घमंड था। मेंढक की प्रार्थना ने उसे भंग कर दिया। जो सच्चे दिल से अपने आप को भगवान के चरणों पर सौंप देता है, ईश्वर कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ता। जय श्री कृष्ण 🙏🙏🙏

8 thoughts on “द्रौपदी का गर्वभंग”

  1. संसार में एक से एक ईश्वर भक्त हुए हैं । उनमे से कई ऐसे जिन्हें अपनी भक्ति पर गर्व था जिसका गर्वभंग ईश्वर ने बड़े ही सहजता से किया है।
    ईश्वर सबके हैं और सभी ईश्वर के,बस जीवन मरण नियति का खेल है। खेलते तो हम भी हैं बस नियति को समझ नही पाते। खूबसूरत पोस्ट।🙏

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      1. स्वागत आपका। व्यस्तता के कारण किसी का भी ब्लॉग नही पढ़ रहा। कारण ….लिख भी नही पा रहा हूं। क्योंकि मेरी अधिकतर रचनाएं औरों को रचनाओं का ही प्रतिफल है।🙏

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