महाभारत के कुरुक्षेत्र संग्राम में जयद्रथ, दुर्योधन के साथ था। अर्जुन सूर्यास्त के अंदर जयद्रथ वध करने का वचन दिया और यदि नहीं कर सका तो अपने प्राण त्याग करने का शपथ लिया था।
पूरा दिन जयद्रथ कहीं छुप गया और उसे कर्ण, दुर्योधन पहरा दे रहे थे। जयद्रथ का पता ही नहीं हो रहा था। अर्जुन चिंतित हो कर श्री कृष्ण से कहा, ” हे कृष्ण!! संध्या निकट रहा है और जयद्रथ का पता ही नहीं है और अब मैं क्या करूं??”

श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से सूर्य को छुपाया और अंधेरा छाने लगा। जयद्रथ खुश हो कर चिल्लाने लगा कि, अब अर्जुन को अग्नि प्रवेश करना पड़ेगा। तभी श्री कृष्ण अर्जुन को जयद्रथ का सिर अपने बाण से तोड़कर उसके पिता के हाथों में गिराने को कहा और तुरंत अपने सुदर्शन चक्र को वापस लिया। सूर्य चमकने लगा। जयद्रथ सूर्य को देखकर चौंक गया। उसे कुछ भी समझ में नहीं आया।
जयद्रथ के पिता वृद्धाक्षर, घोर तपस्या करके जयद्रथ को पाया था। तभी उसे आकाशवाणी से सुनाई गई कि एक पराक्रमी योद्धा द्वारा जयद्रथ मारा जाएगा। इसे सुनकर वृद्धाक्षर ने, जो भी अपने बेटे के सिर को भूमि पर गिराएगा, उसका सिर सौ टुकड़ों में फट जाने का शाप दिया।
अर्जुन ने अपने बाण से जयद्रथ का सिर काट कर उसके पिता के हाथों में सीधा गिरा दिया जो बैठकर अपने आंखें बंद करके संध्या वंदन कर रहा था। जब वृद्धाक्षर अपने आंखें खोले बिना अपने हाथों में गिरी भारी चीज ( जयद्रथ का सिर) को जमीन पर गिराया तुरंत वृद्धाक्षर का शीर्ष सौ टुकड़ों में फट गया।
मनुष्य जितना भी चतुर या चालाक हो, लेकिन भगवान के सामने सब कुछ बेकार ही निकलता है। जो अच्छे मन से अपने को भगवान के चरणों में सौंप देता है ईश्वर उसकी जरूर रक्षा करता है। जय श्री कृष्ण। 🙏🙏🙏
बहुत सुंदर प्रस्तुति |
जय श्री कृष्ण |
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बेहतरीन सारांश।👌👌
असत्य का साथ देनेवाले का अंत ऐसे ही होता है।
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