अनजान 🤔लोगों के नज़रों में हम मामूली सी लोग हैं। हमसे जलनेवाले😤 हमें घमंडी 🙄कहते हैं। हमें समझने 🤗वालों के नज़रों में हम सदा उत्तम 😇ही रहेंगे। हमें पसंद करने वालों के लिए हम कदापि 💖 खास होते हैं। स्वार्थी😛 लोग हमें बिलकुल हटाना 🫥 चाहते हैं। अवसरवादियों😵💫 के लिए हम डरपोक😰 हैं। दुष्टों👺 के नज़र में हम 🥴 मूर्ख हैं। नासमझ 🤭की दृष्टि में हम बुद्धि-हीन 😓 हैं। इस तरह हरेक के नज़र में हम अलग -अलग सा दीखते हैं। इसलिए किसी को भी हम तुष्ट🤗 करना छोड़कर, हम हम ही रहें। और सिर्फ अपने जीवन को, अपने इच्छा के अनुसार किसी को भी कष्ट दिए बिना जिएं। 👍💐
Author: padmaja ramesh
प्रदक्षिणा विधि
मंदिर के प्रांगणों को प्रदक्षिणा करते समय, इस मंत्र को जपते हुए प्रदक्षिण करना उचित होगा। ” यानि कानिच पापानि, जन्मान्तर कृतानि च, तानि -तानि विनश्यन्ति, प्रदक्षिण पदे पदे। ”

इसके फल : ३ बार प्रदक्षिण करने से मन की कामना पूरी होगी। ५ बार प्रदक्षिण करने से जीत मिलेगी। ७ बार प्रदक्षिण करने से अच्छे गुणवान होंगे। ९ बार प्रदक्षिण करने से संतान प्राप्ति होगी। ११ बार प्रदक्षिण करने से उम्र बढ़ती है। १३ बार प्रदक्षिण करने से संपत्ति मिलेगी। १०८ बार प्रदक्षिण करने से अश्वमेध यज्ञ 🔥 का फल मिलती है। जय श्री राम। 🙏 जय श्री कृष्ण 🙏
सरल – भक्ति
एकादशी के दिन श्री कृष्ण के दर्शन के लिए, भक्त जन और महर्षि लोग द्वारका पुर आए थे। तब श्री कृष्ण एक छोटी सी नाटक खेलना चाहे। उन्होंने अचानक अपने सर पकड़कर दर्द होने की भावना की। वैद्य आकर दवाइयां दी। फिर भी इनके इलाज नहीं कर पाए।
रुक्मिणी और सत्यभामा दोनों नारद मुनि के साथ श्री कृष्ण के पास जाकर उन्हीं से उनके सिरदर्द का इलाज करने का तरीका पूछे। श्रीकृष्ण ने कहा, ” अपने परम भक्त के पादों के धूली को लेकर माथे पर लगाना ही इसका एक ही इलाज हो सकता है।” इसे सुनकर दोनों औरतें हैरान हो गई और भगवान पर पादों की धूली को लगाना पाप समझकर चुप हो गई।

श्रीकृष्ण नारद मुनि से बृंदावन जाकर गोपियां से पूछने को कहा। नारद मुनि जब गोपियों से श्री कृष्ण के सरदर्द और उनके इलाज की बात बताई, तुरंत गोपियों ने अपने को यदि कोई पाप लग जाए या नरक प्राप्त हो जाए इसका चिंता न करके सिर्फ श्री कृष्ण के इलाज के लिए, सब मिलकर एक तौलिया पर चलकर, इसमें गिरी हुई धूली को एक गठरी में बांधकर श्रीकृष्ण के इलाज के लिए नारद मुनि को दे दिए। इसे लेकर नारद मुनि श्रीकृष्ण को दिए। श्रीकृष्ण इसे तुरंत अपने माथे पर लगाए और उनके सरदर्द भी दूर हो गई।
इसमें से दो विषय स्पष्ट होती है, एक भगवान भक्तों को दिया हुआ स्थान, दूसरा, भक्तों के भक्ति 🙏 का महत्व। जय श्री कृष्ण 🙏🙏🙏
हनुमान जी के अवतार
हनुमान के नौ तरह के अवतारों का वर्णन ।
पंचमुख हनुमान। लंका में रावण से युद्ध करते समय माया रूपी मयिलरावण, से राम- लक्ष्मण को बचाया।

निरुद्ध हनुमान। योद्धा रूपी हनुमान राम-रावण युद्ध में, युद्ध क्षेत्र , में शत्रुओं का नाश किया। इनके पूजन करने से जीवन की कठिनाईयों से छुटकारा मिलती है।
कल्याण हनुमान। जब हनुमान संजीव पर्वत को लेकर उड़ते हुए समुद्र को पार कर रहे थे तब, समुद्र में तैरती हुई एक मत्स्य कन्या के मुंह में उनके पसीना गिरी और वह एक बालक का जन्म भी दी। और एक कहानी भी है कि, बाद में उस कन्या से विवाह भी हुआ।
बाल-हनुमान। अंजनी-पुत्र हनुमान, अपनी माता के साथ बालक के रूप में होने वाले इस हनुमान की पूजा करने से संतान प्राप्ति होती है।
वीर हनुमान। हनुमान जी ऋषि -शाप के कारण अपने सारे शक्तियां भूल गई। तब लंका में सीताजी को देखने में तकलीफ़ महसूस करने लगे। उन्हें जांबवान ने अपने शक्तियों का याद दिलाए। तब उन्होंने विश्वरूप लिए। वे ही वीर हनुमान जी हैं।
भक्त हनुमान। हनुमान जी को वंदन करने वाले भक्तों को अपने दोनों हाथों को जोड़कर वंदन करते हुए दर्शन देते हैं। भगवान श्री राम को सभी रूपों में देखने के कारण वे अपने भक्तों को भी वंदन करते हैं।
योग हनुमान। भगवान श्री राम के नाम सदा सुनने के लिए हनुमान जी त्रेता- युग के बाद भी, इसी धरती पर ,चिरंजीवी बने रहे। वे योग मुद्रा में बैठकर श्री राम के स्मरण करते रहते हैं।
शिव प्रतिष्ठा हनुमान। रावण को मारने के कारण भगवान श्री राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया। तब उससे मुक्त होने के नाते, भगवान शिव की आराधना करना था। हनुमान काशी से शिवलिंग लाने में देरी हो रही थी, इसलिए सीताजी ने, रेत के शिव मूर्ति को बनाकर दी और श्री राम ने उसकी पूजा करने लगे। हनुमान जी जब आकर देखे तो, अपने देरी पर दु:खी हो गए। लेकिन श्रीराम उस शिवलिंग का भी पूजन किए।
संजीव हनुमान। राम रावण युद्ध में लक्ष्मण घायल हो कर मूर्छित हो गए थे। तब हनुमान जी ने संजीव पर्वत को लाकर इसके जड़ीबूटियां से लक्ष्मण को बचाए।
सप्त चिरंजीवी
मंत्र- पठन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। हम किसी भी तरह की मरीज़ के इलाज को ध्यान में रखते हुए मंत्र पढ़ सकते हैं। आध्यात्मिकता में अंक सात को खास स्थान दिया गया है।
सप्त ऋषि, सप्त कन्या, सप्त स्वरम् (संगीत में), सप्त पदि ( विवाह में), सप्त सागर ; जैसे सात अंक को प्राध्यान्यता दिया गया है। इसी प्रकार सप्त चिरंजीवी भी प्रधान माने जाते हैं। वे ,हनुमान, विभीषण, मार्कण्डेय, महाबली चक्रवर्ती, परशुराम, वेद व्यास और अश्वत्थामा आदि। चिरंजीवी मानें , वे सदा के लिए जीवित ही रहते हैं।
“सप्त चिरंजीवी ” स्तोत्र करने से हम बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं। ऊं श्री आंजनेयाय नमः। ऊं श्री परशुरामाय नमः। ऊं श्री मार्कण्डेयाय नमः। ऊं श्री बलिचक्रवर्त्याय नमः। ऊं श्री वेद व्यासाय नमः। ऊं श्री अश्वत्थामाय नमः। ऊं श्री विभीषणाय नमः। इस मंत्र को स्नान करके, उत्तर दिशा की ओर बैठकर , एक बर्तन में पानी रखकर, इसमें औषधीय दूर्वा घास को डालकर, २१ बार पढ़ना चाहिए। बाद में इस पानी को पीना चाहिए। खासकर बुधवार और शनिवार को पढ़ना और भी बहतरीन होगा। जय श्री राम। 🙏🙏🙏
शुद्ध भक्ति 🙏

त्रिलोक संचारी, नारद मुनि, भूलोक में संचार करते समय, एक ब्राह्मण से मिले। ब्राह्मण जो अपने कर्मों को श्रद्धा पूर्वक कर रहा था , नारद मुनि से पूछा कि, ” हे मुनि श्रेष्ठ !! आप इस भूलोक से सीधा कहां जाएंगे?” नारद ने वैकुंठ में महाविष्णु को दर्शन करने के लिए जाने की बात बताई। तो ब्राह्मण ने,महाविष्णु से “अपने को इसी जनम में मुक्ति मिलेगा या नहीं “, इस बात की जानकारी देने की विनती की।
अब नारद मुनि एक बरगद के पेड़ के नीचे से गुजर रहे थे, जिसके नीचे एक मोची बैठकर जूते 👞बना रहा था। मोची ने भी नारद मुनि को नमस्कार🙏 करते हुए, श्रीमन्नारायण से,अपने को मुक्ति मिलने की समय की जानकारी देने के लिए प्रार्थना की।
नारद मुनि वैकुंठ में महाविष्णु से मिले और उनसे ब्राह्मण और मोची के बारे में बताए। महाविष्णु ने कहा कि, ” मोची को इसी जनम के अंत में मुक्ति मिलेगा लेकिन ब्राह्मण को और कई जनम लेना पड़ेगा।” इसे सुनकर नारद को आश्चर्य 🤔 हुआ। ब्राह्मण जो अपने कर्मों को ठीक तरह से कर रहा है, उसे ज्यादा जन्म लेना पड़ रहा है। वह इसका कारण भगवान से पूछा तो भगवान ने कहा, ” मेरी एक बात को दोनों से कहो और उनके जवाब में ही तुम्हारे शक का उत्तर मिल जाएगा।”
नारद अब सीधा ब्राह्मण के पास आया और उससे कहा कि, ” नारायण वैकुंठ में बैठकर एक सुई के कान में से हाथी को घुसाने की कोशिश कर रहा है।” इसे सुनकर ब्राह्मण ने हंसते हुए कहा ” यह कैसा काम है!!! सुई के कान में हाथी को घुसाना नामुमकिन है।” अब नारद इसी बात को जब मोची से कहा तो मोची ने कहा, ” भगवान श्री महाविष्णु सब कुछ आसानी से कर सकता है। क्योंकी वे भगवान है। ” अपने हाथ में बरगद के पेड़ से गिरी हुई एक छोटी सी 🍑 फल को लेकर ” भगवान,इस फल के बीज 🥯 के अंदर इतना बड़ा बरगद का पेड़ रख सकता है तो, क्यों न एक सुई में हाथी को घुसा सकता है???” अब नारद मुनि को श्रीमन्नारायण की बात याद आई। जिसे भगवान पर पूरा भरोसा है, सिर्फ उसी को , इस जन्म- बंधन 🔗 से मुक्ति मिलता है। हरि: ऊं।🙏🙏🙏
दान – कर्ण
अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच में बातचीत हो रहा था। अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछा कि, ” युधिष्ठिर और कर्ण दोनों दान करने में बराबर है। लेकिन कर्ण को ही ज्यादा प्रशंसा मिल रहा है। ऐसा क्यों???”।
श्रीकृष्ण , अर्जुन को अपने साथ ब्राह्मण की तरह वेष बदलाकर, युधिष्ठिर के पास ले गया। युधिष्ठिर से यज्ञ करने के लिए चंदन के लकड़ियों को दान में मांगा। तुरंत युधिष्ठिर ने अपने सेवकों से चंदन के लकड़ियों को काटकर लाने का आदेश दिया। लकड़ियां लाईं गई। किन्तु बारिश 🌧️में सब लकड़ियां भीगी हुई थी। जिसे यज्ञ 🔥करने में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

अब दोनों कर्ण के पास यही विनती से गए। बारिश की वजह से कर्ण उनसे जरा ठहरने को कहा और तुरंत एक कुल्हाड़ी 🪓 लाकर अपने भवन के खिड़कियां और दरवाजे (जो चंदन के लकड़ियों से बनी है) को काटकर उन्हें दिया।
बाहर आने के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन से कहा, “युधिष्ठिर का दान जो है, वह धर्म है। लेकिन कर्ण जो भी दान में देता है,वह अपने मर्जी से देता है। जो भी काम मर्जी से दिल लगाकर किया जाता है वह सदा सराहनीय होता है। “। जय श्री कृष्ण।🙏🙏🙏
VANDE BHARAT 🇮🇳
About MODI GOVERNMENT
I want to share today’s experience of one of my Friend with “Ravi Ghante”.
Today morning during a 45 in minutes travel in the bus, I met a person. While talking to him I came to know that he is working in the South Block, New Delhi for the Central Government . He is working there since last 25 years. When came to know about this fact, I asked him, whether things have changed after 2014 elections. His answer was not indifferent from my Expectations. But after listening some of his points, my reaction was like- “Oh My God…”
🔶He told that previously there was a culture among some Secretary level officers, not to come to office on time. Even after coming, they used to keep their work pending. In case of urgency, there was a culture to sit late in the office. During late sitting, they use to order their dinner from “Hotel Le Meridian” @ ₹1300/- per plate. Though there were hardly 15 people present in the office, yet food used to come for about 30 people. (including for the family members of those so called Secretaries). In the next day morning, there bills of ₹39,000/- for last night dinner use to get passed instantly by the Planning Commission’s Vice Chairman Mr. Montek Singh Ahluwalia.
That was the kind of wastage of public money by these officers during the Congress led U.P.A government.
👉Now, if someone has to sit late at office, their food comes from their home.
🔶Previously there was a habit of spending public money on changing furniture, curtains and furnishing of office. Now, P.M. has instructed that no furniture and curtains would be replaced before 7 years and no furnishing allowed before 11 years.
🔶Now, no file can be kept pending for more than 7 days. Otherwise direct P.M.O. starts enquiries.
🔶P.M. takes class to his Ministers at around 6:20 AM whenever necessary.
🔶P.M. Modi ji gets up daily before 5 AM and throughout the year he is reaching office before 9:20 AM.
🔶Modi ji keeps fast for more than 100 days in a year. During fast he consumes only water.
🔶In planning commission’s canteen, delicious food is now available from ₹ 60 to ₹ 175.
🔶Daily at 10:10 AM all attendence sheets are dispatched to Prime Minister Office.
🔶Kaaju- Kishmish & Milk culture in Central Government Ministries has now been stopped by our New Prime Minister.
🔶After 2014 elections, Central Government’s revenue has increased by approximately 17%, due to above mentioned measures. Expenses have been curtailed by our Prime Minister.
Thank you India for choosing NARENDRA MODI ji as OUR PRIME MINISTER.
Kindly forward the above message to all your contacts.
B
🇮🇳नमो भारतम 🙏 वंदे मातरम🇮🇳
I know the post is long but it’s worth forwarding in the interest of our Nation. 🙏
प्रकृति
कृष्ण भगवतगीता,( १०.८), “अहम् सर्वस्य प्रभवो मत्त:। सर्वं प्रवर्तते”। ” मैं ही सबका मूल रूप हूं और सारी चीजें मुझसे ही निकले हैं। ” तुम किसी भी तरह की चीज का जांच करो, एक मामूली सी पत्ता, फूल, फल, सब्जी जैसे कोई भी चीज क्यों न हो, हर चीज़ में इसकी खास गुण महसूस होती है। एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है। इस विषय का राज़ है, किसी का *अकल *।
” बहूनाम् जन्मानाम् अन्ते वसुदेव: सर्वं इति “, ऐसे ही कई जन्मों के पीछे की कारण को जांच करने के बाद, अंत में यह पता चला कि , इन सबका मूल कारण भगवान श्री कृष्ण ही हैं। सर्वं कृष्णार्पणं। 🙏🙏🙏
जनक महराज
जनक महराज सीतादेवी के पिताजी, और भगवान श्री राम के ससुर भी हैं । सीतादेवी जनक महराज की पुत्री होने के कारण जानकी नाम से भी जानी जाती है ।

जनक महराज सिर्फ एक राजा ही नहीं बल्कि, एक तपस्वी, ज्ञानी और विद्वान भी हैं। वे अपने जिंदगी भर पुण्य कार्यों के सिवा, अन्य किसी भी तरह की विचार नहीं किया करते थे। सभी अन्य मानवों की तरह एक दिन उन्होंने भी अपने भौतिक शरीर को त्याग किए। लेकिन वे पुण्यवान होने के कारण, उन्हें मोक्ष मिली और उनके आत्मा को ले जाने के लिए एक स्वर्ण- रथ आई। जनक महराज इसमें बैठकर मोक्ष मार्ग पर सफर कर रहे थे।
रास्ते में वे,नर्क लोक से पार कर रहे थे। वहां उन्हें अत्यंत वेदनापूर्वक आवाजें सुनाई दी। उन्होंने सारथी से रथ को रोकने को कहा। उन्हें पता चला कि जो भूलोक में पाप कर्म किए हैं, उन्हें,अपने – अपने पापों के अनुसार दंड भुगतना पड़ रहा है।
जनक महराज दयालु होने के कारण , इन पापियों के दर्द भरी रोदन सुनकर आंसू बहाने लगे। उन्होंने सारथी से अपने को नरक लोक ले जाने की विनती की। सारथी को बड़ी आश्चर्य हुई, कोई भी व्यक्ति मोक्ष को छोड़ कर नर्क में नहीं जाना चाहता है। वे यमराज को जनक महराज के संदेश को बताया। यमराज तुरंत वहां पधारे। और जनक से,” यदि आप नर्क के अंदर आएंगे तो, आपके पुण्य – फल आधा हो जाएगा। और इसका नतीजा यह होगा कि पापियों का दंड भी आधा हो जाएगा।”
जनक महराज ने यमराज से विनम्रता के साथ कहा कि, ” इन लोगों को छोड़ कर मैं मोक्ष लोक में चैन से नहीं रह सकता हूं। मैं अपने सारे पुण्य फल इन लोगों को दे देता हूं। और यहीं उनके साथ रहकर इन सब लोगों को मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए सहारा करता हूं। ” इसे सुनकर कालदेव कुछ नहीं बोल पाए। महान् लोग सिर्फ औरों की भलाई ही करते रहते हैं। इन्हें कभी भी स्वार्थ विचार नहीं होती है।