कर्म – संतान

       कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद धृतराष्ट्र  श्री कृष्ण से पूछा, ” मैं अंधा😵 हूं फिर भी विधुर के सलाह के अनुसार ही अच्छी तरह राज्य पालन किया हूं। लेकिन मैं अपने सारे संतान को युद्ध में खो गया हूं।  इसका क्या कारण हो सकता है”?       

        श्री कृष्ण ने कहा, ” मैं तुम्हें पहले एक कहानी सुनाऊंगा।  और बाद में तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा”।   एक महाराज था।   उसके पास रसोई का काम करने के लिए एक पाचक था।   वह राजा से सम्मान पाने के लिए अच्छी तरह से रसोईयां पकाता था।    एक दिन उसने बगीचे 🏞️ के तालाब 🏊में से एक हंस 🦢 के बच्चे को चुराकर चुपचाप 🤫 इसे पकाकर राजा को परोसा 🥄।    राजा को वह बहुत स्वादिष्ट 😋 लगा और पाचक 👩‍🍳 से अक्सर इस सब्जी को बनाने की आज्ञा दी।    और उस पाचक को सम्मानित भी किया।    

        इस कहानी को सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा,  ”  वशिष्ठ मुनि के पाचक अपने अनजाने में वशिष्ठ मुनि को मांसाहार दिया, जिसे वशिष्ठ मुनि ने अपने ज्ञान से पहचान कर उस पाचक को शाप दिया।     लेकिन यह राजा अपने भोजन में परोसा गया आहार को पहचान नहीं पाया।    पाचक सम्मान पाने के लालच में किया दोष से भी राजा इस विषय को पहचान न सके, यहीं बड़ा दोष है। ”    

       श्री कृष्ण ने कहा ” तुम्हारा राजनीतिक सोच ही तुम्हें भीष्म, द्रोणाचार्य जैसे योद्धाओं के सभा में राजगद्दी पर बिठाया है। अच्छी धर्मपत्नी और  💯 संतान से संपूर्ण जीवन मिला है।     कहानी में बताया गया वह राजा तेरे पिछले जन्म में तुम ही हो, जो उस हंस 🦢 के सौ बच्चों को खाकर उस हंस 🦢 को तड़पाए हो।   अपने भोजन के बारे में अंधे की तरह पहचान न सकने के कारण इस जन्म में अंधे 😵 हो गए हो।     भगवान की सृष्टि में सब कुछ हरेक के कर्मों के अनुसार ही होता रहता है।  हमारे कर्मों का फल हमारे संतान को भी भुगतना पड़ता है। ”          # जय श्री कृष्ण । #  🙏🙏🙏

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