विष्णुवर्धन नामक एक राजा 👑 अपने देश में न्यायपूर्वक राज्यपालन कर रहा था। वह प्रतिदिन ब्राम्हणों को अन्नदान 🍚 दे रहा था। उसके राज्य में लोगों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं थी। वैसे ही मंदिर में एक त्योहार आई। राजा ने ब्राह्मणों को एक शानदार दावत देने का इंतजाम किया था। उसी समय एक गरूड़ 🦅 पक्षी रसोईयों के ऊपर से एक सांप 🐍 को अपने पंजों में दबाकर उड़ रही थी। अचानक सांप की मुंह से कुछ विष की बूंदें रसोई में गिरी। यह बात किसी को पता नहीं था। और उसी भोजन को ब्राम्हणों को परोसा गया। इस विषैल भोजन को खाकर सभी ब्राह्मण मर गए। इससे राजा बहुत दु:खी हो गया।
” इस कर्म के दंड किसे दिए जाय?? ” कर्म-फल लिखनेवाला चित्रगुप्त फैसला लेने में बहुत ही झंझट में पड़ गए। दंड गरूड़ पक्षी या सांप या राजा, किसे देना है??? गरूड़ पक्षी अपने आहार को लेकर उड़ रही थी, इसलिए वह निर्दोष है। सांप, गरूड़ पक्षी की आहार बन गई है, इसलिए वह भी निर्दोष है। राजा को यह बात मालूम नहीं था कि भोजन में विष मिली हुई है। इसलिए राजा को भी दोषी नहीं माना जाता है। आखिर चित्रगुप्त सीधा यमराज के पास जाकर अपने उलझन को सुनाया। यमराज कुछ देर सोचकर कुछ समय के लिए इंतजार करने को कहा।
कुछ दिन के बाद कुछ ब्राह्मण दूर देश से उस राज्य तक पहूंचे। वे राजा से मिलने के लिए राजा के भवन तक जाने की राह वहां मौजूद एक औरत से पूछे। उस औरत ने, उन्हें राह दिखाई और उनसे राजा से सावधानी से रहने की सलाह दी। औरत ने उनसे कहा कि, “यह राजा ब्राह्मणों को भोजन में विष मिलाकर मारता है। इसलिए तुम लोग सावधानी से रहो।”
अब चित्रगुप्त की परेशानी उलझ गई। ब्राह्मणों के मृत्यु के दंड इसी औरत को देने का फैसला किया। किसी को भी दोषी साबित करने से पहले सच्चाई को जानना अनिवार्य है। नहीं तो उस आरोप का पूरा दंड आरोप लगानेवाले को ही भुगतना पड़ता है।
Interesting concluding para. Thanks.
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Interesting post.
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