तिरुवार्पू कृष्ण मंदिर 🙏

श्री कृष्ण

      दुनिया के मंदिरों में से अलग मंदिर।    यह मंदिर २३.५८ * ७ घंटे खुला रहता है।  इस मंदिर का मूर्ति , श्री कृष्ण को सदा भूख लगता रहता है।   १५०० सालों पूर्व यह मंदिर , केरल राज्य के कोट्टायम जिले के तिरुवार्पू में स्थित है।   यहां के श्री कृष्ण को साल के ३६५ दिन, २४ घंटे भूख लगता रहता है।     इसलिए मंदिर को सिर्फ २ मिनट (११.५८-१२) के लिए बंद करके खोल देते हैं।    इस मंदिर के पुजारी के हाथ में एक दरांती दिया जाता है।    यदि दो मिनट में दरवाजे को खोलने में कोई दिक्कत हो ,तो पुजारी दरांती के सहारे दरवाजे को खोल सकें।

भक्तों का मानना है कि, कंस को वध करने के बाद श्री कृष्ण का शरीर ,बहुत उष्ण हो गया था और उसी स्थिति में वे इस मंदिर में आकर , यहीं ठहर गए। अभिषेक करने के बाद, श्री कृष्ण के सिर को सुखाकर, प्रसाद निवेदन किया जाता है। इसके बाद ही तन को सुखाया जाता है।

ग्रहण के समय में भी इस मंदिर को खुला रखते हैं। एक बार ग्रहण के समय बंद करके, बाद में जब खोले तो श्री कृष्ण का शरीर शुष्क नजराया। तब वहां जगद्गुरु श्री शंकराचार्य आकर कहे कि , “श्री कृष्ण का शरीर भूख के कारण सूखा हुआ है। ” उस दिन से आज तक यह मंदिर खुला ही रहता है।

इस मंदिर से प्रसाद लिए बिना कोई बाहर नहीं जा सकते हैं। पुजारी मंदिर को २ मिनट के लिए बंद करने से पहले सबसे ऊंची आवाज़ से पूछता है, ” कोई भूखा है?!”। जो कोई इस मंदिर का प्रसाद लेता है उसे जीवन भर के लिए भूखे रहने का अवसर नहीं होता है। जय श्री कृष्ण। 🙏🙏🙏

एकलव्य 🏹

एकलव्य

एकलव्य ‘महाभारत में एक छोटी सी पात्र लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका। अपनी मानसिक गुरु द्रोणाचार्य को अपने दाएं हाथ की अंगूठी को दक्षिणा में देकर अपने गुरुभक्ति को साबित किया।

पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य को, अर्जुन सबसे ज्यादा पसंदीदा शिष्य है। एक रात को सबके सोने के बाद अर्जुन अकेले में धनुर्विद्या अभ्यास कर रहा था। धनुष के तार के आवाज़ सुनकर द्रोणाचार्य उठकर अर्जुन को अकेले में अभ्यास करना देखकर प्यार से उसे वचन दिया कि,” इस जगत में अर्जुन को धनुर्विद्या में सबसे प्रतिभाशाली बनाएगा। “

द्रोणाचार्य से शिक्षण लेने के लिए कई राज्यों से राजकुमार आ रहे थे। निशाद वंश में से हिरण्यद नामक राजा के पुत्र एकलव्य भी अपने को शिक्षण देने के लिए , द्रोणाचार्य से अनुरोध किया। लेकिन द्रोणाचार्य उसके वंश को ‘नीच’ कहकर उसे शिक्षण देने से मना कर दिया। एकलव्य उसे नमस्कार करके वहां से निकल गया।

एकलव्य द्रोणाचार्य को अपने मानसिक गुरु मानकर मिट्टी से उसका मूर्ति बनाया। द्रोणाचार्य के आश्रम से ८ मैल के दूरी पर रहते हुए, बीच में होने वाले पेड़ों को काटकर , वहीं से द्रोणाचार्य के शिक्षण के अभ्यास करने लगा। गुरुभक्ति और कठिन परिश्रम से धनुर्विद्या में प्रवीणता प्राप्त किया।

एक दिन अपने गुरु के आदेश के अनुसार पांडव वन में शिकार करने गए। उनके साथ आया हुआ एक सेवक अपने कुत्ते को भी साथ में लाया। तब वो कुत्ता सीधा एकलव्य के पास आया। एकलव्य का शरीर और कपड़े मैला और काला था। इसे देखते ही कुत्ता भौंकने लगा। एकलव्य ने उस कुत्ते पर एक ही समय ७ तीर चलाया और वे तीर कुत्ते के मुंह पर लग गए। कुत्ता मुंह पर लगा हुआ तीरों के साथ पांडवों के पास आया। पांडवों को इस कुत्ते की हालत से यह मालूम हुआ कि, किसी ने कुत्ते को देखें बिना सिर्फ उसके आवाज को सुनकर उस पर तीर चलाया है। और उसके प्रतिभा को देखकर, एकलव्य को देखें बिना सब उसे सराहने लगे।

पुण्य – फल

एक बार ब्रम्हर्षि वशिष्ठ, राजर्षि विश्वामित्र के आश्रम पधारे।

दोनों बहुत देर तक संभाषण किए। अंत में वशिष्ठ विदा लेते समय, विश्वामित्र उन्हें, स्मारक पुरस्कार देना चाहे। अपने सहस्र तपस्याओं के फल वशिष्ठ को दान में दिए। वशिष्ठ मुनि संतुष्ट होकर वापस अपने आश्रम लौटे।

ऐसे ही एक बार विश्वामित्र को भी वशिष्ठ मुनि के आश्रम जाने का अवसर मिला। वशिष्ठ ने भी विश्वामित्र के अतिथि सत्कार किए। दोनों के बीच में, पुण्य देने वाले आध्यात्मिक विषयों के बारे में ही बात-चीत चल रहा था। विश्वामित्र के जाते समय वशिष्ठ उन्हें आध्यात्मिक तत्वों से मिलने वाले पुण्य को दान में स्वीकार करने की विनती की। लेकिन इस पर विश्वामित्र खुश नहीं थे। दोनों मिलकर अपने दान के महत्व जानने के लिए, ब्रम्हा से पूछने के लिए ब्रम्हलोक गए।

ब्रम्हा उनके विवादों को सुनकर कहा कि, “आप लोग महाविष्णु से पूछिए। वे शायद आपके विवादों को सुलझ सकें। ” जब वे महाविष्णु से पूछे तो विष्णु ने उन्हें सदा तपस्या करने वाले शिवजी से पूछने को कहा। शिवजी ने उनसे पाताल लोक में रहने वाले आदिशेष से , इनके प्रश्नों के उत्तर लेने की सलाह दी।

आदिशेष के सर पर भूमि प्रस्तुत है। आदिशेष ने उनके बातों को सुनकर कहा, ” इसका उत्तर सोचकर ही बताना पड़ेगा। तुम दोनों अपने शक्ति का प्रयोग करके इस भूमि को थोड़ी देर तक अंतरिक्ष में खड़ा करो।”। तुरंत विश्वामित्र ने अपने हजार तपस्याओं के फल के प्रयोग से भूमि को अंतरिक्ष में खड़ा करने की कोशिश किए और विफल हो गए। अब वशिष्ठ मुनि आध्यात्मिक तत्वों से मिलने वाले पुण्य का प्रयोग करके भूमि को अंतरिक्ष में खड़ा करने में सफल हो गए। आदिशेष दोनों के ओर देखकर बोला, ” अब समझ गए होंगे कि, आध्यात्मिक तत्वों से मिलने वाले पुण्य, सहस्र तपस्याओं से मिलने वाले शक्ति से भी अधिक महत्वपूर्ण है।”

कवि तुलसीदास जी और हनुमान जी के संवाद

अपनी पत्नी के सलाह के अनुसार तुलसीदास रामभक्त होकर रामचरित मानस के रचना किए। उनका एक आदत था। सुबह पूजा – पाठ करके रचना करते थे और शाम को मंदिर में इसका भाषण करते थे।

तुलसीदास

हम सब जानते हैं कि, जहां भी श्री राम नाम लिया जाता है वहां हनुमानजी जरुर किसी भी रूप में प्रस्तुत हो जाते हैं। तुलसीदास बालकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड पूरा करके सुन्दरकाण्ड का भाषण लिए थे।

हनुमान जी सीता माता को देखने के लिए अशोक वन में कदम रखा। वहां सीता माता अपनी चारों तरफ गिरी हुई सफेद रंग के फूलों के बीच, उदासीन बैठी हुई नज़र आई। हनुमान सीता माता से आशीर्वाद लेने उनके यहां गया। यहां तक भाषण देकर तुलसीदास उस दिन के भाषण को समाप्त किया।

सबके प्रस्थान के बाद एक वृद्ध ब्राह्मण ने तुलसीदास के पास आया। ” जी आजका सुन्दरकाण्ड वर्णन बहुत श्रेष्ठ था, लेकिन इसमें एक छोटी सी गलत थी। सीता माता के चारों तरफ गिरी हुई फूल सफेद रंग की नहीं बल्कि लाल रंग की थी ” । लेकिन तुलसीदास उनके बातों को न माने। उन्होंने हनुमान से इसका कारण पूछा। हनुमान ने कहा, क्यों कि वह खुद हनुमान होने के कारण इस विषय को जानता है। यह कहकर हनुमान अपना ब्रम्हांड रुप का दर्शन तुलसीदास को दिया। तुलसीदास उनको अपना सर झुका कर नमन किया। लेकिन कहा कि, भगवान श्री राम ही अपने को लिखवाने के कारण वे हनुमान के बातों पर नहीं आ सकते। दोनों अपने बात पर अडिग रहे और अंत में श्री राम से इस विषय पर उनके फैसले सुनाने के लिए प्रार्थना किए।

भगवान श्री राम उनसे कहा ” तुम दोनों सही हों। सीता के चारों ओर गिरी हुई फूल सफेद रंग के हैं। लेकिन हनुमान, सीता की हालत देखते ही गुस्से में उसके आंख लाल होने के कारण उसे वे फूल लाल रंग में नजर आए। श्री राम के बातों पर दोनों ने संतुष्ट हो कर उन्हें प्रणाम किए। जय श्री राम 🙏🙏🙏

खुद को जानें 🤗

एक काॅफी – शाप ☕ के मालिक उस दिन बहुत ही व्यस्त था। शनिवार होने के कारण ज्यादा लोग आराम से काॅफी पीने के लिए इकट्ठा हो गए थे। सुबह से बहुत ही व्यस्त होने के कारण वह थकावट महसूस करने लगा। शाम होते – होते उसे सर दर्द होने लगा। अपने पास काम करने वाले को काम सौंपकर दूकान से बाहर आया।

उसके दूकान से थोड़ी ही दूर पर होने वाला एक दवाई – दूकान 💊 जाकर एक सर – दर्द की गोली खरीदकर उसे लिया। कुछ देर बाद वह अपना सर दर्द🤕 कम होना ,महसूस किया। तभी वहां काम करनेवाली औरत से पूछा, ” आपके मालिक कहां गए?” औरत ने कहा ” हमारे मालिक को सर दर्द हो रहा था इसलिए वे आपके काॅफी शाप तक गए हैं। आपके शाप से एक गरम काॅफी पीने से उनका सर दर्द दूर हो जाएगा। ” इसे सुनकर काॅफी शाप के मालिक हक्का बक्का हो गया।

इसी तरह ज्यादातर लोग अपने – अपने ताकत को भूलकर औरों के पास सुकून को ढूंढते रहते हैं। सुकून और चैन सिर्फ संतुष्टि में ही मिलती है।

शंकरामृतम् 🙏

श्रुति , स्मृति पुराणानाम् आलयम् करुणालयं। नमामि भगवत् पादम् शंकरम् लोकशंकरम्।।

एक मंदिर में एक महान आए थे। वे मंदिर से बाहर आते समय एक भिखारी उनसे पूछा ” स्वामी!! मेरा जीवन भीख मांगने में ही गुजर रही है। मुझे इससे मुक्ति पाने की उपाय दीजिए।” महान् ने शिवजी के दर्शन करके अपने परेशानी से दूर होने की सलाह दी।

भिखारी शिवजी को देखने निकला। रास्ते में रात होने के कारण एक धनी के घर के आंगन में एक रात के लिए ठहरने की इजाजत मांगी। धनी इजाजत देते हुए भिखारी के रवाने के बारे में पूछा। कारण जानकर धनी अपनी गूंगी बेटी कब सबकी तरह बात करेगी, इसके बारे में जानकारी लेकर आने के लिए विनती की।

बहुत दूर जाने के बाद रास्ते में एक बड़ी पर्वत उसके रास्ते के सामने खड़ा हुआ था। भिखारी को उसे पार करने में झंझट हो रहा था। तभी वहां एक जादूगर आया। वह भिखारी से ” मैं अपने मंत्र-दंड से इस पहाड़ को हटाकर तुम्हारे रास्ते को ठीक करूंगा। मैं ५०० सालों से जीवित हूं। तुम शिवजी से मेरे मुक्ति पाने का मार्ग पूछकर आना”। भिखारी ने मान लिया। और पर्वत हट जाने पर आगे बढ़ने लगा।

अब भिखारी को रास्ते में एक नदी पार करना पड़ा। नदी में एक कछुआ भिखारी को मदद करने के लिए आई। बदले में अपने को शिवजी से उड़ने की शक्ति देने की विनती की। और भिखारी को नदी पार करने में मदद की।

भिखारी शिवजी का दर्शन किया। शिवजी भिखारी को तीन वर प्रदान करने के लिए तैयार थे। भिखारी के तो चार मांग थे। वह सोच में पड़ गया। अंत में फैसला कर लिया कि, वह तो सदा की तरह भीख मांग कर जी लेगा। इसलिए अपने रास्ते में मदद किए लोगों के कामनाओं को पूरा करने के लिए शिवजी से विनती किया। शिवजी से वर पाकर वापस लौटा।

कछुए ने अपने वर के बारे में पूछा। जब कछुआ अपने खोल को छोड़ेगा उसे उड़ने की शक्ति मिलेगा। कछुए ने अपने खोल निकालकर भिखारी को दे दिया। उसमें मोती और मूंगा भरे थे। उसे लेकर भिखारी खुशी से चलने लगा। अब जादूगर आकर अपने बारे में पूछा। जादूगर से कहा कि, वह अपने मंत्र दंड छोड़ने पर उसे मुक्ति मिलेगी। जादूगर ने अपने मंत्र दंड भिखारी को देकर मुक्ति पाया। अब धनी के घर जाकर उससे कहा कि, उसकी बेटी अपने मन पसन्द आदमी को जब देखेगी तुरंत वह बात करने लगेगी। तभी उसकी बेटी ऊपर से आकर ” यह वही आदमी है न जो हमारे घर आया था।” इसे सुनकर धनी बहुत खुश होकर भिखारी से अपनी बेटी की शादी करवाई।

उस दिन से भिखारी धनी हो गया। मंत्र दंड, मोती – मूंगा और सुंदर पत्नी के साथ भर पूर जीवन जीने लगा। इस कहानी से हमें यह बोध मिलता है कि, हम परायों के लिए प्रार्थना करने से भगवान हम पर ज्यादा करूणामय हो जाते हैं।

बेटी 👰

बेटी 👰घर का एक हिसाब (१२३४५) नहीं बल्कि हमारे घर के आंगन का एक पवित्र तुलसी 🌿 होती है।

बेटी उतराने की बोझ 🪨 नहीं, घर की कल्पतरु 🌲 है।

बेटी एक कांच 🫗 की गुड़िया 🪆नहीं, घर में पैदा हुई और एक “मां” होती है।

बेटी कष्ट 😑और आंसुओं 🥺की प्रतीक नहीं बल्कि, ” प्रेम “😚 का प्रतीक है।

शादी 📿के बाद बिछड़ 👐 जाने पर भी, मैके में किसी भी संकट होने पर दौड़कर आ जाती है।

बेटे की तरह कब्रिस्तान तक नहीं आने पर भी, “मां” 🫄बनकर और एक जन्म दे सकती है।

जिस घर में बेटी हो, वह घर बन जाती है एक मंदिर 🙏💐।

जिसका बेटी हो, वह गर्व महसूस कर सकें, एक युवराणी के पिता “राजा” 🫅की तरह।

बेटियों को समर्पण। 🤩💐

गाय 🐄 और कसाई 🔪

एक कसाई एक गाय 🐮 को मारने के लिए लेकर जा रहा था। गाय क़साई को देखकर हंसी। इस पर कसाई ने गाय 🐮 से , “मैं तुम्हें मारने के लिए लेकर जा रहा हूं और तुम हंस रही हो??”

गाय कहना शुरू की। “मैं ने कभी भी अपनी जीवन में मांस नहीं खाई। फिर भी मेरी मौत इतना भयानक होगी। मैं ने किसी को किसी भी तरह की हानि नहीं पहूंचाई हूं। लेकिन मेरी मौत इतना घोर है तो मुझे मारकर मेरी मांस खाने वाले तेरा मौत कितना भयानक हो सकता है इस बात को सोचकर मुझे हंसी आई।”

तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मैं दूध 🥛 देती हूं लेकिन मैं सिर्फ घास खाती हूं। दूध से दही, मख्खन🧈 ,घी आदि से आप लोगों को पौष्टिक आहार मिलती है। मेरी गोबर से गोबर-ग्यास बनाकर रसोई🔥 के लिए इस्तेमाल करते हैं। गोबर को किसान को खाद में बेचकर कमाते हैं। मुझे खराब हुई सब्जियां और सूखा घास🌾 खाने के लिए देते हैं। मेरी दूध से इतना फायदा उठाकर, मेरी दूध से मिली हुई बल से मुझे ही मारने आए हो। तुम्हारी मां से बढ़कर , तुम्हें एक मां

की तरह देखभाल करने वाली मुझे मारने के लिए तुम्हारे दिल कितना कठोर हो सकता है??”

भगवान श्री कृष्ण के प्रीतिदायक गोमाता 🐄की रक्षा करें। जय श्री कृष्ण। 🙏🙏🙏

खजाना 🪙

एक राजा 🫅ने अपने राज्य के लोगों के बारे में जानने के लिए एक रास्ते के बीच में एक बहुत बड़े पत्थर 🪨 को रख दिया। और अपने को कुछ दूरी पर छिपाकर उस रास्ते से जानेवालों पर नजर लगाया। राज्य के व्यवसाई 📈 और कार्यकर्ता 🪖 लोग सब उस रास्ते से जा रहे थे। इस पत्थर 🪨 को पार करते हुए कहने लगे कि, ” रास्ता ठीक नहीं है और इसके बारे में राजा से फिर्यादी करना चाहिए !” लेकिन किसी ने भी इस पत्थर 🪨 को रास्ते से हटाने की कोशिश तक नहीं की।

कुछ समय बाद एक किसान👨‍🌾 ने , अपने सिर पर तरकारियों से भरी हुई एक बड़ी गठरी के साथ आ रहा था। उसने जब इस पत्थर 🪨 के पास आया, अपने गठरी को जमीन पर रखा और इस पत्थर 🪨 को रास्ते से हटाने की कोशिश में लग गया। कुछ देर की मेहनत के बाद इस पत्थर को रास्ते से दूर किया।

जब किसान ने अपने तरकारियों के गठरी को उठाया तब उस पत्थर 🪨 के जगह मौजूद एक थैली 👝 को देखा और इसे खोला। इसमें सोने के सिक्के 🍠 थे और इसके साथ एक कागज़ 📝पर लिखा था कि, ” यह भेंट 🪙, पत्थर 🪨 उठाने वाले के लिए,राजा का उपहार 🎁।”

इस कहानी का संदेश है, हरेक प्रतिबंध 🛑 को हम अपने विकास 🤗 का कारण समझकर उसे सुलझने की कोशिश करें।

वैकुंठ और कैलाश

एक गुरु अपने शिष्यों के साथ, एक शाम के समय, आश्रम में आराम कर रहे थे। उन्होंने कुछ सोचते हुए अपने शिष्यों से पूछा, ” क्या तुम लोग जानते हो कि वैकुंठ कहां है??” एक शिष्य ने कहा, ” वैकुंठ सूर्य मंडल और नक्षत्र मंडल को पार कर बहुत दूर पर स्थित है। ” गुरु ने हंसते हुए पूछा” तो बताओ कैलाश कहां पर है?” शिष्य ने कहा वह सीधा वैकुंठ के आमने-सामने ही हो सकती है।

गुरु ने इन बातों को सुनकर हंसा और कहा, ” वैकुंठ तो हमारे आवाज पहूंचने के दूरी पर और कैलाश हमारे हाथ पहूंचने के दूरी पर ही स्थित है।” शिष्यों को गुरु के बात समझ में नहीं आई।

गुरु ने उन्हें समझाते हुए कहा, ” तुम सब गजेन्द्र मोक्ष कथा सुनें होंगे। जब गजेन्द्र को मगरमच्छ ने पकड़ा तो गजेन्द्र ने श्रीमन्नारायण से अपने को बचाने केलिए जोर से पुकारा और भगवान नारायण तुरंत वहां आकर अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ को मारकर हाथी को बचाया। मार्कण्डेय जिसका अपने सोलहवीं उम्र में मृत्यु होने की विधि थी, वह भगवान ईश्वर से लिपटकर अपने को यमराज से बचाने की प्रार्थना की, उसे भगवान शिव ने अपने हाथों से बचाते हुए यमराज को मार्कण्डेय के प्राण लेने से रोक दिया। इन विषयों को सुनकर शायद अब तुम सब समझे होंगे कि वैकुंठ और कैलाश दोनों भक्तों के पास ही मौजूद हैं। ऊं नमो नारायणाय 🙏🙏।। ऊं नमश्शिवाय 🙏🙏।।